मौनी अमावस्या

मौनी अमावस्या
मौनी अमावस्या का वर्णन कुम्भ के सन्दर्भ में मिलता है। जब अमृत को बचाने के लिए जब धन्वन्तरि कलश लेकर भागे, अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर ४ स्थानों पर गिरी जहाँ आज कुम्भ का आयोजन किया जाता है। वे हैं प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। मौनी अमावस्या को अत्यंत ही शुभ माना जाता है। इस दिन मौन रहकर स्नान करने की प्रथा बहुत पुरानी है।

आज के दिन गंगास्नान कई गुणा अधिक फल देता है। यदि ये तिथि सोमवार को पड़े तो इसका महत्त्व बहुत ही बढ़ जाता है और अगर उस समय कुम्भ का ही आयोजन हो रहा हो तब तो मौनी अमावस्या को गंगास्नान का अर्थ एक प्रकार से अमृत में नहाने के समान है। सौभाग्य से इस वर्ष ऐसा ही संयोग पड़ा है जब मौनी अमावस्या सोमवार को है और प्रयाग महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है। आइये इसके विषय में कुछ जानते हैं:
  • इस दिन स्नान का अत्यधिक महत्त्व है। अगर संभव हो तो गंगास्नान अवश्य करना चाहिए। अगर गंगा तक जाना संभव नहीं हो तो साधारण जल में गंगाजल मिला कर नहाना चाहिए। अगर गंगाजल उपलब्ध ना हो तो साधारण जल से ही स्नान करें। 
  • आज के दिन मौन व्रत रखने का विशेष महत्त्व है। ये एक मिनट, एक घंटे, एक साल - आपकी सुविधा के अनुसार कितने भी समय तक के लिए रखा जा सकता है।
  • कहा जाता है कि आज एक दिन समस्त देवता गंगा में प्रवास करते हैं इसीलिए आज के दिन गंगास्नान का महत्त्व अत्यधिक है। 
  • कहते हैं कि इस रात्रि को बुरी आत्मायें सक्रिय हो जाती है इसीलिए इस दिन रात्रि को श्मशान के नजदीक नहीं जाना चाहिए। 
  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए और बिना स्नान के भोजन नहीं करना चाहिए। 
  • इस दिन मांसाहार एवं मदिरा का प्रयोग वर्जित है अतः इससे बचना ही चाहिए। 
  • गरुड़ पुराण में कहा गया है कि इस दिन सम्बन्ध बनाने से उत्पन्न बच्चों को जीवन भर सुख नहीं मिलता। इसीलिए इस दिन दंपत्ति को सम्बन्ध बनाने से बचना चाहिए।
  • इस दिन दान का विशेष महत्त्व है अतः आज कुछ न कुछ दान करना चाहिए। विशेषकर तिल का दान विशेष फलदायी है। 
  • इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की पूजा का विधान है। कहते हैं हरि ही हर हैं और हर ही हरि। 
  • इस दिन ब्रह्मदेव और देवी गायत्री का भी पूजन करने का विशेष महत्त्व है। 
  • इस दिन सूर्यनारायण को अर्ध्य देने से बड़ा पुण्य मिलता है। 
  • इस दिन तुलसी एवं पीपल की १०८ परिक्रमा करने का विधान है। 
इस व्रत के लिए एक कथा है कि कांचीपुरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम देवस्वामी तथा उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके ७ पुत्र तथा १ पुत्री गुणवती थी। उनके सातों पुत्रों का विवाह हो चुका था और पुत्री के लिए योग्य वर की तलाश जारी थी। उसी समय एक विद्वान पंडित ने उसकी कुंडली देखकर बताया कि ये कन्या विवाह होते ही विधवा हो जाएगी। तब उसके पिता ने उसका निवारण पूछा तो उस पंडित ने बताया कि सोमा, जो एक धोबिन है जो सिंहल द्वीप में रहती है, उसकी पूजा करने से इसका वैधव्य दोष समाप्त हो जाएगा। इसीलिए उसका गुणवती के विवाह में रहना अत्यंत आवश्यक है। तब देवस्वामी ने अपने छोटे लड़के को अपनी बहन को साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने को कहा। 

अपनी बहन को लेकर उसका भाई समुद्र तट पर पहुँचा जिसके पार सिंहल द्वीप था। लेकिन उस सागर को कैसे पार किया जाये? ये सोचकर वो हताश होकर अपनी बहन के साथ एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस वृक्ष पर एक विशाल गिद्ध रहता था जो जब अपने बच्चों के लिए खाना लेकर आया तो उनके बच्चों ने भोजन करने से मना कर दिया क्यूंकि उनके घर के नीचे दो प्राणी भूखे प्यासे बैठे थे। तब उस गिद्ध ने उन्हें भोजन दिया और स्वयं अपने ऊपर बिठा कर सिंहल द्वीप पहुँचा दिया। 

वहाँ वे लोगों से पूछते-पूछते सोम के घर पहुँचे। सोमा अपने पति, पुत्र, बहु और पोते के साथ रहती थी। वहाँ दोनों भाई-बहन ने सोमा की बड़ी सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर सोमा उनके साथ जाने को तैयार हो गयी। वे सोमा को लेकर वापस आये और उसकी उपस्थिति में गुणवती के विवाह हुआ। विवाह होते ही उसका पति मर गया पर सोमा ने अपने सारे संचित पुण्य के प्रभाव से उसके पति को जीवित कर दिया। 

फिर सबने उसका बहुत सत्कार कर धन-धान्य के साथ विदा किया। उधर उसका पुण्य समाप्त हो जाने से उसके पूरे परिवार की मृत्यु हो गयी। जब वो वापस पहुँची तो ये दृश्य देख कर रोने लगी। उस दिन मौनी अमावस्या थी। उसने अपना धैर्य नहीं खोया और वही पर लगे पीपल के पेड़ की १०८ परिक्रमाएं कर भगवान शिव और श्रीहरि की पूजा की। उनकी कृपा और सोमा की भक्ति के कारण उनके परिवार के सदस्य जीवित हो गए। तब से ही मौनी अमावस्या का व्रत रखने का विधान चल पड़ा।

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