श्री दत्तात्रेय के २४ गुरु

श्री दत्तात्रेय के २४ गुरु
भगवान दत्तात्रेय महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूया के पुत्र थे जो नारायण के अंश से जन्मे थे। उन्हें भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है। श्री दत्तात्रेय ने एक बार देवर्षि नारद से कहा था कि उन्होंने कई लोगों और चीजों से काफी कुछ सीखा है और उन्होंने जिनसे भी सीखा है उन्हें वे अपना गुरु मानते है। यहाँ तक कि उन्होंने पशुओं के भी अपने गुरु का दर्जा दिया। देवर्षि नारद के अनुसार भगवान दत्तात्रेय ने उन्हें अपने २४ गुरुओं के बारे में बताया। ये गुरु हैं: 

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी एवं भृंगी

मनुस्मृति

मनुस्मृति
'मनुस्मृति नामक धर्मशास्त्र और संविधान के प्रणेता राजर्षि मनु 'स्वायम्भुव' न केवल भारत की, अपितु सम्पूर्ण मानवता की धरोहर हैं। आदिकालीन समाज में मानवता की स्थापना, संस्कृति-सभ्यता का निर्माण और इनके विकास में राजर्षि मनु का उल्लेखनीय योगदान रहा है। यही कारण है कि भारत के विशाल वाङ्मय के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों के साहित्य में मनु और मनुवंश का कृतज्ञतापूर्ण स्मरण तथा उनसे सम्बद्ध घटनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। यह उल्लेख इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि प्राचीन समाज में मनु और मनुवंश का स्थान महत्वपूर्ण और आदरणीय था।

भगवान शिव के सभी पुत्र एवं पुत्रियाँ

वैसे तो जब शिवपुत्र की बात आती है तो हमारे ध्यान में कार्तिकेय और गणेश ही आते हैं। वैसे तो भगवान शिव के किसी भी पुत्र ने माता पार्वती के गर्भ से जन्म नहीं लिया है किन्तु फिर भी कार्तिकेय और गणेश को शिव-पार्वती का ही पुत्र माना जाता है और इनकी प्रसिद्धि सबसे अधिक है। इन दोनों के अतिरिक्त महादेव की एक कन्या है अशोक सुंदरी। किन्तु कुछ अन्य भी हैं जिन्हे महादेव के पुत्र और पुत्रियाँ होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ हम महादेव के अवतारों को नहीं जोड़ रहे हैं। तो आइये उनके बारे में कुछ जानते हैं:

राक्षस वंश का वर्णन

पुराणों के अनुसार परमपिता ब्रह्मा के शरीर से जल की उत्पत्ति हुई। उसी जल से दो जातियों की उत्पत्ति हुई जिन्होंने ब्रह्मदेव से पूछा कि उनकी उत्पत्ति क्यों हुई है? तब ब्रह्मा ने उनसे पूछा कि तुममे से कौन इस जल की रक्षा करेगा। उनमे से एक ने कहा कि हम इस जल की रक्षा करेंगे, वे "राक्षस" कहलाये। दूसरे ने कहा वे उस जल का यक्षण (पूजा) करेंगे, वे यक्ष कहलाये। तब ब्रह्मदेव ने दो राक्षसों हेति-प्रहेति की उत्त्पति कि जिससे आगे चल कर राक्षस वंश चला। आगे चल कर इस वंश में एक से एक पराक्रमी योद्धाओं ने जन्म लिया जिसमे से सबसे प्रसिद्ध रावण है। आइये राक्षस वंश पर एक दृष्टि डालते हैं:

श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रम् (हिंदी अर्थ सहित)

श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रम् (हिंदी अर्थ सहित)
विनियोग
अस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रमन्त्रस्य भगवान् नारद ऋषि:।
अनुष्टुप् छन्द:, श्रीदत्त: परमात्मा देवता। 
श्रीदत्तप्रीत्यर्थं जपे विनियोग:।

अर्थात: इस दत्तात्रेयस्तोत्ररूपी मन्त्र के ऋषि भगवान नारद हैं, छन्द अनुष्टुप है और परमेश्वर-स्वरूप दत्तात्रेय जी इसके देवता हैं। श्रीदत्तात्रेय जी की प्रसन्नता के लिए पाठ में विनियोग किया जाता है।

काकभुशुण्डि

काकभुशुण्डि का वर्णन वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदास के रामचरितमानस में आता है। सबसे पहला वर्णन इनका तब आता है जब देवी पार्वती ने महादेव से श्रीराम की कथा सुनाने का अनुरोध किया था। माता के अनुरोध पर भगवान शिव उन्हें एकांत में ले गए और रामकथा विस्तार से सुनाने लगे। दैववश देवताओं के लिए भी दुर्लभ उस कथा को वहाँ बैठे एक कौवे ने सुन लिया। भगवान शिव द्वारा कथा सुनाये जाने पर उसे श्रीराम के सभी रहस्यों सहित पूर्ण कथा का ज्ञान हो गया। वही कौवा आगे चल कर काकभुशुण्डि के रूप में जन्मा।

पञ्चाक्षरी मन्त्र एवं शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र

वेदों और पुराणों में वर्णित जो सर्वाधिक प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण मन्त्र हैं, उनमे से श्रेष्ठ है भगवान शिव का पञ्चाक्षरी मन्त्र - "ॐ नमः शिवाय"। इसे कई सभ्यताओं में महामंत्र भी माना गया है। ये पंचाक्षरी मन्त्र, जिसमे पाँच अक्षरों का मेल है, संसार के पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है जिसके बिना जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है।

रामचरित मानस के रोचक तथ्य

रामचरित मानस के रोचक तथ्य
वाल्मीकि रामायण के बाद अगर कोई और राम कथा सबसे प्रसिद्ध है तो वो है तुलसीदास कृत रामचरितमानस। इसे तुलसीदास जी ने १५७४ ईस्वी में लिखना आरम्भ किया था और २ वर्ष ७ मास और २६ दिन के बाद १५७६ ईस्वी को इसे पूर्ण किया। आइये रामचरितमानस के बारे में कुछ अनसुने तथ्य जानते हैं।

हनुमद रामायण - जिसे हनुमान ने स्वयं समुद्र में डुबा दिया

रामायण का जिक्र आते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया मूल रामायण ही आता है। आधुनिक युग में उनके बाद सबसे प्रसिद्ध रचना तुलसीदास कृत रामचरितमानस है। इसके अतिरिक्त भी रामायण के कई और महत्वपूर्ण स्वरुप हैं जैसे कम्ब रामायण इत्यादि। ये बात तो निर्विवाद है कि रामायण में अगर कोई श्रीराम के अनन्य भक्त थे तो वो महाबली हनुमान ही थे।

महर्षि लोमश - जिनका वरदान ही उनके लिए श्राप बन गया

लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। वे बड़े-बड़े रोमों या रोओं वाले थे इसीकारण इनका नाम लोमश पड़ा। सप्त चिरंजीवियों के बारे में तो हम सबने सुना है लेकिन उसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे लोग है जिनके बारे में मान्यता है कि वे अमर हैं। उनमे से एक लोमश ऋषि भी हैं। अमरता का अर्थ यहाँ चिरंजीवी होना नहीं है बल्कि उनकी अत्यधिक लम्बी आयु से है।