कालिया नाग

श्रीकृष्ण और कालिया नाग के विषय में तो हम सभी जानते हैं पर कालिया नाग के वंश के विषय में हमें अधिक जानकारी नहीं है। कालिया नाग की कथा हमें भागवत पुराण, हरिवंश पुराण और महाभारत में मिलती है। आज इस लेख में हम कालिया नाग के विषय में ही जानेंगे।

महर्षि कश्यप और कुद्रू से १००० नागों की उत्पत्ति हुई जिनसे १००० नाग कुल चले। कालिया नाग भी इन्ही में से एक था। वो शेषनाग, वासुकि, तक्षक इत्यादि का छोटा भाई था। पहले वो भी अपने भाई शेषनाग की भांति महासागर में रहता था किन्तु जब नागों का विवाद गरुड़ से हुआ तो वो उससे बचने के लिए सुरक्षित स्थान खोजने लगा। 

उसी समय उसे पता चला कि सौभरि नामक एक सिद्ध पुरुष ने गरुड़ को ये श्राप दिया है कि वो वृन्दावन नहीं आ सकते। ये जान कर वो अपनी पत्नी सुरसा सहित वृन्दावन आ गया और यमुना में उसने अपना निवास बनाया। कई स्थानों पर उसकी छह पत्नियों के होने का उल्लेख मिलता है। उसके विष से सारी यमुना विषाक्त हो गयी। उसके आस पास के सभी जीव जंतु मर गए और घास तक सूख गयी। केवल यमुना किनारे खड़ा कदम्ब का एक वृक्ष ही सुरक्षित रहा। 

एक बार महर्षि दुर्वासा वृन्दावन आये जहाँ पर राधा ने उनकी बड़ी सेवा की। उसके बाद जब राधा जल भरने यमुना गयी तो वहां पर उसने महाभयंकर कालिया सर्प को देखा। उसे देख कर वो डर गयी और वापस आकर सबको उसके बारे में बताया। श्रीकृष्ण इससे क्रोधित हो गए और यमुना पहुंचे। एक बालक को अपने सामने देख कर कालिया ने उन्हें जकड लिया और जल में खींचने लगा। किन्तु प्रभु को भला कौन खींच सका है?

श्रीकृष्ण ने कालिया नाग की पूंछ पकड़ कर उसे ताड़ित करना आरम्भ कर दिया। तब कालिया नाग भागने लगा किन्तु श्रीकृष्ण ने उसे नहीं छोड़ा। उसी समय माता यशोदा यमुना तट पर आयी और पाने छोटे से पुत्र को एक विषधर के साथ देख कर डर गयी। उन्होंने श्रीकृष्ण को तत्काल वापस आने को कहा जिसे सुनकर श्रीकृष्ण ने कालिया को छोड़ दिया और वापस आ गए। 

यहाँ तक की कथा हमें भागवत पुराण और हरिवंश पुराण में मिलती है। इससे आगे की कथा हमें महाभारत में मिलती है। 

प्रतिदिन कृष्ण अपने मित्रों और बलराम के साथ गौ चराने जाते थे। जब तक गौएँ चरती थीं, बालक भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल खेलते थे। अधिकतर उनका जमावड़ा यमुना नदी के तट पर ही होता था। अगले दिन खेलते-खेलते कृष्ण को बड़ी प्यास लगी। जैसे ही वो यमुना नदी का पानी पीने को बढे, उनके मित्रों ने उन्हें रोक दिया और बताया कि यमुना में कालिया नामक अतिविषधर नाग का निवास है जिसके कारण पुरे यमुना का पानी विषाक्त हो चुका था। यही कारण था कि यमुना के इतने पास होने पर भी ब्रजवासियों को बड़ी दूर से पानी लाना पड़ता था।

इस संकट को जान कर श्रीकृष्ण ने मन ही मन इससे मुक्ति दिलाने की ठान ली। खेल-खेल में ही उन्होंने अपनी गेंद यमुना में फेंक दी और सब के लाख समझने के बाद भी वो उसे लाने के बहाने यमुना में कूद पड़े। जब सबने ऐसा देखा तो दौड़ कर नन्द और यशोदा को इसकी खबर की। बलराम तो सब जानते ही थे, इसी कारण वे वही निश्चिंत खड़े रहे। कृष्ण के यमुना में कूदने की बात सुनकर सभी दौड़े-दौड़े यमुना तट पर पहुँचे। वहाँ नदी में कोई हलचल ना देख कर सबने कृष्ण की आशा ही छोड़ दी। यशोदा तो दुःख से अपनी चेतना ही खो बैठी। ये सत्य था कि कृष्ण और बलराम ने अब तक कई राक्षसों का वध किया था किन्तु इस प्रकार के महाविषधर से उनका सामना कभी नहीं हुआ था। और वैसे भी कृष्ण अभी एक बालक ही तो था।

उधर कृष्ण यमुना के भीतर पहुँचे और कालिया नाग को खोजने लगे। यमुना का जल उस विषधर के विष से पूर्ण विषाक्त हो चुका था किन्तु विष कृष्ण का क्या बिगाड़ लेता? अचानक उन्हें यमुना के मध्य में तेज हलचल दिखाई दी। जब वो वहाँ पहुँचे तो उन्होंने १०० फण वाले उस महाभयंकर नाग को देखा। वो इतना विशाल था कि दूर-दूर तक केवल उसी का शरीर दिख रहा था। उसके फणों से तेज विष का स्राव हो रहा था जिस कारण यमुना विषाक्त हो रही थी। 

जब कालिया ने एक बालक को इस प्रकार निर्भय अपने सामने देखा तो आश्चर्य से भर गया। आज तक किसी देवता ने भी इस प्रकार कालिया के सम्मुख आने का साहस नहीं किया था फिर ये बालक अचानक यहाँ कैसे आ गया? ऐसा सोच कर कालिया तीव्र वेग से कृष्ण के वध हेतु उनकी ओर लपका। कृष्ण ने बात ही बात में कालिया की पूँछ पकड़कर उसे बड़ी दूर फेंक दिया। एक बालक में इस प्रकार का बल देख कर कालिया सोच में पड़ गया किन्तु फिर अपनी पूरी शक्ति से कृष्ण पर टूट पड़ा।

दोनों में भयानक युद्ध छिड़ गया। कृष्ण ने जल्द ही अपने प्रहारों से कालिया को व्यथित कर दिया। उनके प्रहारों से कालिया के शरीर से रक्त की धारा बह निकली और वो पीड़ा से अचेत हो गया। अब कृष्ण ने उसके वध की ठानी किन्तु उसी समय उस विषधर की पत्नियाँ वहाँ आ गयी और उन्होंने कृष्ण से क्षमा की याचना की। कृष्ण ने उनकी प्रार्थना सुन ली और इस शर्त पर कालिया के प्राणों का दान दिया कि वो यमुना को छोड़ कर हमेशा के लिए चला जाएगा। 

अब तक कालिया भी ये समझ चुका था कि ये कोई साधारण बालक नहीं है। उसने कृष्ण से उनका असली स्वरुप दिखाने की प्रार्थना की और तब कृष्ण ने उसे अपने नारायण रूप के दर्शन दिए। तब कालिया ने उनकी चरण वंदना करते हुए कहा - "हे प्रभु! आप तो हम सभी के आराध्य भगवान शेषनाग के भी आराध्य हैं। भला मैं आपको कैसे परास्त कर सकता हूँ? आपकी आज्ञा के अनुसार मैं यमुना को छोड़ कर चला जाऊँगा किन्तु मुझे ये भय है कि यहाँ से जाते ही गरुड़ मेरा वध कर देगा।"

तब श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को अभय दिया और कहा कि गरूड़ उन्हें कोई हानि नहीं पहुंचाएंगे। उन्होंने कालिया नाग को रमणक द्वीप पर जाकर बसने को कहा। जाने से पहले कालिया नाग ने प्रभु से प्रार्थना की "हे प्रभु! मेरी केवल एक विनती है कि जिस प्रकार हमारे आराध्य श्री अनंत आपको धारण करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं, एक बार मुझे भी आप ये सौभाग्य प्रदान करें।" कृष्ण ने प्रसन्न होकर तथास्तु कह दिया। 

उधर ऊपर जब सबने यमुना का जल रक्तिम होते देखा तो सबने समझा कि कालिया नाग ने कृष्ण की हत्या कर दी। सभी शोक में रुदन करने लगे। तभी जल में एक तेज हलचल हुई और महाभयंकर नाग जल से ऊपर आया। उसका रूप इतना भयानक था कि कई लोग तो उसके दर्शन मात्र से अचेत हो गए और कइयों ने भय से अपने नेत्र बंद कर लिए। तभी सब ने देखा कि उस विशाल नाग के सर पर कृष्ण विराजमान हैं। 

वहाँ कृष्ण उसी प्रकार शोभा पा रहे थे जिस प्रकार काले मेघों में तड़ित शोभायमान होती है। उसके बाद कृष्ण ने कुछ समय तक अपनी लीला दिखाई। उन्होंने कालिया के फणों पर एक अत्यंत महोहरी नृत्य करना आरम्भ किया। कालिया जो भी फण उठता, कृष्ण उसी फण पर नृत्य कर उसका मर्दन कर देते। श्रीकृष्ण की ये लीला देखने के लिए देवतागण भी आकाश में स्थित हो गए। कुछ काल तक कृष्ण ये लीला करते रहे और फिर श्रीकृष्ण की आज्ञा अनुसार कालिया नाम वृन्दावन छोड़ कर रमणक द्वीप में जाकर बस गया।

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