गंगा सप्तमी

आप सभी को गंगा सप्तमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। हर वर्ष वैशाख मास की सप्तमी को इस पर्व को मनाया जाता है। भारत में विशेषकर हरिद्वार एवं वाराणसी में इस दिन बड़ी संख्या में लोग गँगा स्नान के लिए पहुँचते हैं। कहा जाता है कि आज ही के दिन माँ गंगा स्वर्ग से उतर कर महादेव की जटाओं में पहुँची थी। इसके बाद जिस दिन गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे पृथ्वी पर पहुँची उस दिन को गंगा दशहरा के रूप में देश भर में मनाया जाता है।

आज गंगा सप्तमी के दिन गंगा के जन्म की कथा सुनाई जाती है और गंगा स्नान किया जाता है। गंगा का स्थान भगवान विष्णु के चरणों में, परमपिता ब्रम्हा के कमंडल में एवं भगवान शिव की जटाओं में बताया गया है। इस प्रकार तीनों त्रिदेवों के सानिध्य का सौभाग्य केवल माता गंगा को ही प्राप्त है। गंगा के जन्म के विषय में कई कथाएँ प्रचलित हैं:
  • पुराणों के अनुसार एक बार दैत्यों से युद्ध करने के श्रम के कारण भगवान विष्णु के चरणों से पसीना बहने लगा और इसी से गंगा की उत्पत्ति हुई। 
  • त्रेतायुग में भगवान नारायण ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि का उद्धार किया। उस क्रम में तीन पग भूमि नापने के लिए उन्होंने अपना विश्वस्वरूप धारण किया और एक पग से पूरी पृथ्वी को नाप लिया। जब दूसरे पग पर उन्होंने स्वर्ग को नापने के लिए चरण उठाया तब परमपिता ब्रह्मा ने अपने कमंडल के जल से उनके चरणों का प्राक्षालन किया जिससे परम पावन गंगा की उत्पत्ति हुई। 
  • एक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव गायन करने लगे और उनके इस मधुर स्वर को सुनने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, नारद सहित समस्त देवता एकत्रित हो गए। भगवान विष्णु महादेव का गायन सुनकर ऐसे मुग्ध हो गए कि आनंद से उनके शरीर से स्वेद बहने लगा जिसे ब्रह्माजी ने अपने कमंडल में भर लिया। यही गंगा के नाम से प्रसिद्ध हुई। 
  • गंगा को पृथ्वी पर लाने का श्रेय निर्विवाद रूप से श्रीराम के पूर्वज भगीरथ को जाता है। अपने पूर्वज राजा सगर के पुत्रों की मुक्ति के लिए उन्होंने घोर तप किया जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा को पृथ्वी पर जाने का आदेश दिया।
  • गंगा पृथ्वी पर जाना नहीं चाहती थी इसीलिए उसने सोचा कि मैं इतने वेग से पृथ्वी पर गिरूँगी कि वो रसातल में समा जाये। ब्रह्मा जी ने गंगा की ऐसी इच्छा समझ कर भगीरथ से महादेव को प्रसन्न करने को कहा क्यूंकि केवल वही गंगा के वेग को सँभालने में सक्षम थे। 
  • भगीरथ ने ऐसा ही किया और महादेव को प्रसन्न किया। उसकी इच्छा पूर्ण करने के लिए भगवान शिव ने गंगा का आह्वान किया। गंगा भीषण वेग से कैलाश की ओर बढ़ी ताकि वो पृथ्वी को नष्ट कर सके किन्तु महादेव ने उसे अपनी जटाओं में बांध लिया। गंगा के गर्व मर्दन के बाद उन्होंने अपनी एक जटा से उसे पृथ्वी पर भेजा। इसी दिन को हम गंगा सप्तमी के रूप में मनाते हैं। 
  • गंगा को हिमालय की बड़ी पुत्री भी माना जाता है और इसी कारण वो देवी पार्वती की बड़ी बहन भी है। एक कथा ये भी है कि महादेव अपनी पत्नी की बड़ी बहन को इतनी जल्दी विदा नहीं करना चाहते थे इसी कारण उन्होंने सात दिनों तक गंगा को अपनी जटाओं में बाँध कर रखा। 
  • जब गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे पृथ्वी पर आई तो अपनी तपस्या में व्यवधान के कारण जन्हु ऋषि ने गंगा को पी लिया। बाद में भगीरथ के अनुनय-विनय के पश्चात उन्होंने अपनी जंघा को चीर कर गंगा को मुक्त किया। तब से गंगा का एक नाम जाह्नवी भी पड़ गया और वे जन्हु ऋषि की कन्या कहलाई। 
  • आज ही के दिन महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम और लक्ष्मण को अपनी यात्रा के दौरान गंगा तट पर ही गंगा अवतरण की कथा भी सुनाई थी। 
इनके अतिरिक्त भी देवी गंगा की असंख्य कहानियाँ हैं जो सतयुग से कलियुग तक चल रही हैं। कहा जाता हैं कि कलियुग में मोक्ष प्राप्त करने का सबसे सरल साधन राम-नाम एवं गंगा-स्नान है। वैसे तो किसी भी काल में गंगा में स्नान करने से पुण्य मिलता है किन्तु आज गंगा सप्तमी के दिन गंगा-स्नान का विशेष महत्त्व है। आज के दिन जो भी व्यक्ति भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करता है वो अपने सारे पापों से मुक्त हो शिवलोक को प्राप्त करता है।

।। नमामि गंगे।।

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